अभी तो झुर्री नही पड़ीं थीं, उम्र कहां थी जाने की। अभी तो ख्वाइश जीतने की थी,” हार”कहां पहनाने की। अभी तो जीना वर्षों का था, ” बिदा” कहाँ कह पाने की। अभी तो घर की रौनक थे तुम, अभी वहां से कहां गए। दिल की बाज़ी जीते थे तुम , किडनी से क्यों हार गए । ग्लानि बहुत है ,हमको भी तो, कुछ भी ना कर पाने की।पर बिटिया की एक तम्मना पापा को पा जाने की।✍️