रोज की ही तरह उस दिन भी घर आते ही कार से उतर कर गेट खोल ही रही थी कि शर्माजी पास आने लगे ।सड़क के दूसरी ओर उनका मकान था। किसी से बातें करते कभी दिखाई नही दिए थे वो । पास की पड़ोसी ने एक बार उनका परिचय ये कह कर दिया था शर्माजी की पीने की आदत है।…उस दिन वो पास आ कर बोले पंत मैडम आपके जेठ मेरे ही आफिस में थे। फिर वे रामायण और महाभारत की बातें करने लगे थे । आधा गेट खोल कर मैं उनकी धार्मिक बातें सुन ‘जी’ ‘जी’ कर रही थी। तभी घर के पड़ोस की पिंकी ने आकर कहा ,आंटी आप अंदर जाओ इन अंकल ने आज चढ़ाई हुई है । मैने डर कर कहा शर्माजी मैं कार अंदर पार्क करके आती हूँ। फिर कार रखते ही घर के गेट का ताला खोल अंदर जाते ही दरवाजा बंद कर दिया था ।अपने कमरे की खिड़की के पर्दे के एक कोने से देखने लगी थी कि वो कब तक गेट में बाहर खड़े हैं ।थोड़ी ही देर में उनकी पत्नी आई और उनके कान में कुछ बोल उनका हाथ पकड़ कर उन्हें घर ले गईं थीं और अपने घर का दरवाजा बंद कर दिया था । …..शर्माजी की छोटी बेटी इंजीनियरिंग कर रही थी। वो अक्सर अपने घर के छोटे से बगीचे में अपनी चेयर में बैठी सामने टेबल में कुछ लिखती पढ़ती दिखाई देती। उसके पास ही बैठे शर्मा जी एक कुर्सी में अखबार पढ़ते दिखाई दे जाते थे। बीच बीच मे बेटी पापा को देखती और फिर अपनी पढ़ाई में मग्न हो जाती।………
उस दिन छुट्टी ली थी मैने भी । शर्मा जी की बेटी की विदाई थी । लड़का भी इंजीनियर ही मिला था ।विदाई के समय सारे पड़ौसी उनके घर के बाहर खड़े थे उस बेटी को विदाई देने । शर्माजी का विवाहित बेटा भी था जिसे उस दिन ही देखा था । थोड़ी ही देर में उनकी विवाह प्रथा अनुसार बहन को भाई अपनी गोद में लेकर दरवाजे से बाहर निकला ,वो कार की ओर बढ़ रहा था । शर्माजी की बिटिया के आंखों में आँसू थे पर मौन सी थी भाई की गोदी में वो पीछे मुड़ कर एक एक करके सबको देख रही थी । “अचानक अपने पापा को देख वो जोर जोर से रो कर चिल्लाई ,पापा नहीं… पापा नहीं .. पापा पीना नहीं मम्मी परेशान होंगी वो मर जाएंगी….पापा आप बीमार हो जाओगे… पापा आपको मेरी कसम पीना नहीं” । पूरा माहौल शांत था। सभी बेटी की विदाई के बाद आंखों में आँसू लिए अपने अपने घर को लौट गए थे।
बेटी के जाने के बाद मैंने देखा शर्मा जी बेटी की कुर्सी में बैठे अक्सर अखबार पढ़ते दिखाई देते थे। पिंकी ने बताया था आंटी बेटी की कसम के बाद अंकल ने पीना छोड़ दिया है।
उस दिन भी घर लौटते समय कार से उतरते ही जब घर का गेट खोल रही थी ,शर्माजी के घर की ओर नज़र पड़ी शर्माजी बेटी की उसी कुर्सी में बैठे थे जिसमें उनकी बेटी पढ़ते दिखाई देती थी । मेरे कदम अचानक उनकी ओर बढ़ने लगे । मैने हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्कार किया। ये नमन उस पिता को था जो बेटी की दी गई कसम को तोड़ नही पाया । ये पापा अपनी बेटियों को कितना प्यार करते हैं ना ? ✍️
अपने लेखन में आपने भावनाओं को बहुत ख़ूबसूरती से पिरोया है ।
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अपने लेखन में आपने भावनाओं को बहुत ख़ूबसूरती से पिरोया है ।
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Thanks.
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Very touching and nice article ma’am 👌👌🙏🌷
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Thank you Yogesh.I feel your pen is also very specific in the world of word press.🌷
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बहुत सुन्दर दिल को छू गई 🙏🙏☺️☺️
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आभार Mahavish जी,आपने सराहा।
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