कुछ की आंखें थी नम होकर,
कुछ मुस्काए थे यह सुन कर।
कुछ थे नाम राम का लेते,
कुछ अल्लाह अकबर थे कहते।
कुछ ने हाथ लिए थे पत्थर,
कुछ निकले थे खंज़र लेकर।
इक दूजे को मरते देखा ।
खून एक सा बहते देखा ।
चीखें भी कितनी मिलती थीं ।
दर्द में ये दिल्ली घुलती थी।
नेता देश से बड़ा हुआ था ।
ज़िद में अपनी अड़ा हुआ था ।
एक इंच ना पीछे जाता था वो ।
पब्लिक को भड़काता था वो।
पर ‘दिल वाले’ दिल्ली के थे ।
कुछ ने जा उनको सहलाया।
कुछ ने जा के गले लगाया ।
नेता की चाल ना चल पाई थी ।
भारत का दिल , ‘दिल्ली अपनी’।
दिल वालों की कहलाई थी । 🇮🇳✍️
चंद लमहों के लिए ही सही … ‘कोरोना ‘ तुमने फिर से पूरे देश को एक कर दिया क्योंकि यह वायरस हिंदू -मुस्लिम का भेद नहीं जानता।
जो अब तक थे बैनर लेकर अड़े , कोरोना देख हुए भाग खड़े .. तो क्या आपदा आते ही सच्ची देश भक्ति जागृत होती है ?
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