मैं हूँ और मेरा सूनापन,
कितना इसमें है अपनापन ।
कभी बनाया पंछी इसने,
कभी बनाया है आकाश।
दूर रहे तुम जितना मुझसे,
ये ले आया अपने पास ।
सुलझाया मेरा उलझा मन।🌷
कितना इसमें है अपनापन ।
मैं हूँ और मेरा सूनापन…
बहुत दूर थी मैं अपने से,
जब तक तेरे पास रही मैं।
आज हुई जब दूरी तुझसे,
इसे किया मैंने सब अर्पन।
महकाया मेरा मन आँगन।🌹
कितना इसमें है अपनापन।
में हूँ औऱ मेरा सूनापन .. ✍️
आपकी बात निराली है हर कविता दिल को छूने वाली है ।♥️
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