
तुमने आकर मुझको काटा,
मुझमें ही कुछ मुझको छाँटा।
सीमाओं में बांध दिया,
इक छोटे से आँगन में ।
जैसे सागर तपता है,
सावन में जल देने को।
लो मैं भी तैयार खड़ा हूँ,
तुमको फल देने को । ✍️
तुमने आकर मुझको काटा,
मुझमें ही कुछ मुझको छाँटा।
सीमाओं में बांध दिया,
इक छोटे से आँगन में ।
जैसे सागर तपता है,
सावन में जल देने को।
लो मैं भी तैयार खड़ा हूँ,
तुमको फल देने को । ✍️
👌👌🌻
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