समय के इस दौर में आदमी भूल गया उस रचयिता को जिसने बड़े शौक से इस दुनिया की रचना की होगी ।विशेषकर भारतवर्ष की रचना करते समय उसका मूड बहुत अच्छा रहा होगा। एक बच्चे के innocent brain सा । जो अपनी ड्राइंग में सूरज, पहाड़, बादल, वर्षा, पेड़ -पौधे ,हरियाली , नदी ,नाव ,खेत सब अपने छोटे छोटे हाथों से बना देता है । शायद उस समय अपनी इस रचना को बना कर श्रद्धा से उसने ये पुष्प हम पर ही चढ़ाए हों जिन्हें आज हम उन्ही पर चढ़ाते हैंऔर इसी श्रद्धा से उस रचियता ने हमे बुद्धि क्षमता कुछ अधिक दे दी हो ।
दुख है हमने हरदम उस ईश्वर को अपने कब्जे में कैद करना चाहा उन चार दीवारी बिल्डिंग में जिसे कभी मन्दिर कभी मस्ज़िद ,गुरुद्वारा, चर्च के नाम से हम उसके मालिक बन बैठे।अपना मालिकाना हक इतना समझ लिया कि हम भष्मासुर बन आदमी को दूसरे समूह में रख मानव का ही नाश करने लगे । मानव गुरु का झांसा दे स्वयं की पूजा करवाने लगा ।वो एक ब्रोकर बन ईश्वर और पुजारी के बीच दीवार बना और ईश्वर के स्थान पर स्वयं बैठ गया । मानव स्वयं का बनाया धार्मिक चोला पहन अपने को दूसरे से अधिक विशिष्ट समझने लगा। ईश्वर ने इसके canine teeth reduce किए थे और इसमें दया भाव डाला था लेकिन आदमी स्वयं ही एक हानिकारक वायरस की तरह behave करने लगा था। तब लगता है ईश्वर ने भी अपने इस drawing पेज को एडिट कर मानव को रोकने के लिए कोरोना की एंट्री कर दी है । कभी कभी डर लगता है यदि ये मानव ईश्वर की इस रचना का तिरस्कार यूं ही करता रहा तो वो रचयिता कही अपने इस रचना के पन्ने को फाड़ कर फेंक ना दे ,उस innocent बच्चे की तरह जो कभी झुंझला कर अपनी ही ड्राइंग पेज को मोड़ तोड़ कर फाड़ कर फेंक देता है ।✍️
heart touching…..excellent writing..so true…..
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तारा जी ,उद्धरण के माध्यम से अच्छा वर्णन किया है ।जो जीवन की सच्चाई को बताता है ।कोरोना एक प्राकृतिक आपदा है ।
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अति सुन्दर वर्णन किया है ।उद्धरण द्वारा सत्यता प्रतीत होती है ।कोरोना प्रकृति प्रदत्त है ।
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Ok
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आपने बहुत उत्कृष्ट उदाहरण के साथ अपनी बात कही …शायद विधाता ने कोरोना वायरस की संरचना उस मानव को सबक़ सिखाने के लिए ही की है , जिसने अपने बनाए विज्ञान को उसकी रचना के साथ खिलवाड़ करने का साधन समझ लिया।
परिजनों से बात कर पता लगा कि पिछले कुछ दिन से “लॉक -डाउन “ के बाद आसमान साफ़ -नीला दिखाई दे रहा है, साँस लेने पर वातावरण में शुद्घ हवा का अहसास होने लगा है..इत्यादि । इससे बहुत कुछ साबित हो जाता है।
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