
घर में दीदी का विवाह था। बड़ा उत्साह था विवाह में हम बच्चे उस समय बहुत उत्साहित थे । रात भर कन्यादान पूजा पाठ चलता रहा। कन्यादान के बाद सुबह कब हुई, पता ही नहीं चला । रात को सभी बहन भाइयों ने गुप्त meeting की थी। जीजाजी के जूते छुपाने की । कुछ बुद्धिमान भाई बहनों की duty लगा दी गई थी, इस काम में । अच्छी रकम मिलने की आशा थी क्यों कि हमारे नए जीजाजी आर्मी में captain थे । जूते ऐसी जगह छुपाए गए थे कि लाख कोशिशों के बाद भी कोई बाराती ढूंढ न पाता । घर के outer gate की hedges के बीच । हमने जूते छुपाई से मिलने की रकम बड़ी सुनियोजित तरीके से तय की थी ताकि सभी विवाह में उपस्थित 8-10 बहन भाइयों का हिस्सा बराबर हो सके। सवेरे 9 बजे बारात की विदाई थी। सब ओर शांति सी थी । अचानक पंडितजी की तेज आवाज बार बार सुनाई दी, अरे मेरे जूते कहां गए अरे मेरे जूते। लोग जूते ढूंढने लगे ।लोग पूछने लगे पंडितजी से, कहाँ उतारे थे जूते ? थोड़ी ही देर में जीजाजी भी सामने आ गए । ये क्या हो गया था दूल्हे जीजाजी ने तो जूते पहने हुए थे ।हमसे बड़ी भूल हो गई थी जिस कमरे में जीजाजी, पंडित जी और कुछ लोगों ने प्रवेश किया था।वहां सबसे नए जूतों को दूल्हे का समझ लिया था।
हम पंडित जी से क्या demand करते ।उन्हें चुपचाप से उनके जूते लाकर दे दिए थे । ✍️
क्या मजा आया होगा। सजीव चित्रण किया है ।
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Sweet memories.
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Excellent real life story- beautifully written – takes you back to the history
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Dear AP thank you.
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Ha ha , sweet memories😃
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