
कितना भी परफेक्ट हो टीचर,
कुछ ही मिनट पढ़ाता है।
पीरियड ओवर होते ही,
फिर वापस वो हो जाता है ।
ऐ मेरी ज़िंदगी बता तू ,
कब तक मुझे पढ़ाएगी ?
मेरे ही अनुभव से मुझको
कब तक तू सिखलाएगी ।
माँ ने अंगुली थाम बरस में,
चलना मुझको सिख लाया,
और पिता भी कुछ महीनों में,
बोल मेरे होंठों तक लाया।
पर कब तक तू, द्रोणाचार्य सी,
एकलव्य को भरमाएगी?
मांग तेरी पल पल में मेरे,
अंगूठे तक हो जाएगी ।
अब तक तू जीवन का मेरे,
सार नहीं समझा पाई।
बस सुख दुख के इन जालों में,
तू मुझको उलझा ले आई ।
अब तो स्याही खत्म कलम की,
अब और न मैं लिख पाऊँगी।
इस जीवन का पार कहां तक ,
बिन जाने ही जाऊंगी । ✍️
reality of life….endless exploring…
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Wah wah kya bhav hay
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Very true , through our experiences every now and then in life, we learn a lot, and its a continuous process 👌
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अति उत्तम भाव।
जीवन रूपी शिक्षिका तो अंतिम सांस तक अनुभव कराकर सिखाती रहती है।
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टीचर की स्याही कभी खत्म नहीं होती ।आखिरी दम तक वह किसी न किसी रूप में शिक्षा देता रहता है ।चाहे प्रत्यक्ष हो या परोक्ष ।बहुत सुन्दर रचना है ।
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A beautiful poem expressing the reality of life.
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👍🙏😍
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🌷🤗
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लाज़वाब
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Thanks Anupama.😊
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