वैसे तो कई बार नैनीताल की ओर गई हूँ परंतु अक्सर रामपुर रोड काशीपुर बाजपुर के तिराहे से रास्ता confuse करता है। कार में उस दिन G.P.S. काम नही कर रहा था और हम हल्द्वानी न जाकर काशीपुर पहुंच गए थे। तब से कार रोक कर पास खड़े लोगों से रास्ता पूछ लेते हैं । कार का window glass नीचे करके हम पास खड़े लोगों को बुलाने का इशारा जैसे ही करते दो तीन लोग तेजी से आते ,हम पूछते ” भैया हल्द्वानी का रास्ता कौन सा है ? वे बड़ी आत्मीयता से समझाते “आप इस रास्ते से जाइए रामपुर road का रास्ता उबड़ खाबड़ है । आपको परेशानी होगी ।” दूसरा कहता बाजपुर के रास्ते की सड़क अच्छी है लेकिन रात को सुनसान हो जाती है वो सड़क ।रात के लिए उतनी सुरक्षित नही है ।” हम उनको धन्यवाद कहते हुए window glass नीचे कर आगे बढ़ जाते हैं ।
सोचती हूँ ये अक्सर होता है कहीं भी नई जगह या दूर जाने पर हम अनजाने लोगों से राह पूछते हैं और उनके बताए रास्तों में कितने विश्वास के साथ चल पड़ते हैं उस दिशा में और अपने गंतव्य को पा लेते हैं।
महसूस किए है मैंने ये रिश्ते भले ही क्षणिक हों एक तरफा निस्वार्थ से ये लोग । बहुत दूर तक अपनी ध्वनि बनाए रखते हैं ये। ये लोग ना हिन्दू लगते हैं ना मुसलमान बस बहुत अपनत्व समेटे हुए से हैं , ये पल भर के रिश्ते कितनी राहत देते हैं। 🙏 ✍️
वसुधेव कुटुंबक ये ही है । सजीव चित्रण किया है ।अति सुन्दर ।
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Yes sure . Though I am very late I will translate it.
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जी बिल्कुल सही लिखा है। जिनसे कोई सम्बन्ध नही उनपर भी विश्वास करते हैं,
उनके बताए रास्तों पर बेधडक चल पड़ते हैं।
कभी कभी कुछ लोग पलभर में ही दिल में समा जाते हैं।
कभी मिलते नही मगर हम भूल नही पाते हैं।
शायद यही जीवन है।
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आपने भी स्वीकृति थी अच्छा लगा।🙏
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🙏🙏
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*दी । कंप्यूटर लेख में त्रुटि सुधार
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हो जाता है ऐसा। स्वागत आपका।
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वाक़ई एसे अनुभव और एसे लोग भी बहुत याद आते हैं , कई बार तो लगता है कि ख़ुद भगवान आकर सही रास्ता बता गए…
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माँ नहीं छूटती। उसका स्मरण मात्र ही समझो कोई शक्ति देने वाला साथ चल रहा है।
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कलम के साथ भावों की सहमति के लिए धन्यवाद।
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आपकी की सभी रचनाएँ /पंक्तियाँ वास्तविक जीवन का सच बिखेर कर हृदय को छू जाती हैं ।
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सहमति और सराहना के लिए आभारी हूँ।
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