T.V.news में पैदल चलते मजदूरों को जितनी बार देखती हूँ , मुनियां की याद आ जाती है।
नया सरकारी आवास मिला था हमें । घर में प्रवेश करते ही घर के बगीचे में दीवार से सटे चांदनी के पेड़ पर नजर पड़ी तो एक डाल पर बैठी थी वो । ये ही 9-10 साल की रही होगी ।फ्रॉक पहने, घुंघराले बाल, सांवले रंग की हंसती हुई सी । हमने कहा था नीचे उतरो। कहां से आई हो ? अभी गिरोगी तो चोट लगेगी नीचे क्यारी की ईंटे हैं । क्या नाम है तुम्हारा ? एक ही बार मे नीचे कूद गई थी वो । बहुत भोलेपन से बोली मैं मुनियां हूँ। मेरी माँ यहां काम करती है । आप नए आए हो ? इस घर की पहले वाली आंटी बहुत अच्छी थीं। फिर वो मेरे दोनो बच्चों को देख कर मुस्कुराईं थी । एक अनौखा सा अपना पन था उस बच्चे में, शायद इस आवास में पहले रहने वाली आंटी के स्नेह के कारण ..। उसकी माँ हमारे घर काम करने लगी थी और मुनियां मेरे दोनो बच्चों को देखा करती । इस काम के लिए उसे ही रख लिया था हमने ।
देखते ही देखते मुनियाँ बड़ी होने लगी थी। माँ 15 वें साल में उसे गांव ले गई थी। जब लौटी तो बड़ी सी बिंदी , मांग में सिन्दूर और हाथों में चूड़ियां पहने थी । उसे देखते ही मैंने आश्चर्य से पूछा तो बोली माँ ने मेरी शादी कर दी है । लड़का गाड़ी चलाता है। बहुत पैसा मिलता है वहाँ । मैने पूछा उसको नही लाई ? वो बड़े भोलेपन से बोली जब गौना होगा तब आएगा। बम्बई में रहता है । कुछ महीने बाद मुनियां की माँ को अपने गांव के रिश्तेदार से पता चला कि लड़का ट्रक दुर्घटना में मारा गया था। उस दिन से मुनियाँ बहुत गंभीर सी हो गई थी । माथा बिंदी के बिना सूना सा हो गया था। उसकी भाभी ने जल्दी ही दूसरा लड़का ढूंढ लिया था। घर से कुछ ही दूरी पर रहने वाले बिहारी लड़के से ही उसका विवाह हो गया था। इस बार उसके लिए हमने भी खूब सामान खरीद कर दिया था। चार पहिये वाले ठेले पर रख खुला समान दहेज कह कर ले जाया गया था । अबकी बार बिना गौने के वो ससुराल पहुंचा दी गई थी।
विवाह के कुछ महीने बाद वो मिलने आई थी । चेहरे में पहला सा उत्साह नही था बोली, “आंटी बहुत पीता है और फिर मारता है ।” मुनियाँ की माँ शायद सब समझती थी इसीलिए मुनिया को वापस घर ले आई थी । वो बीमार सी हो गई थी ।शहर के डॉक्टर को दिखाया था उसने । कई बार उसकी झुग्गी झोपड़ी में उसे देखने जाती तब वो स्वयं ही उठ गिलास में मेरे लिए पानी ले आती । उस बच्चे के हाथ का पानी ना जाने क्यों बहुत मीठा लगता था ।
उस दिन मुनियाँ की माँ को गांव जाना था। बोली मुनियाँ को इलाज के लिए बिहार ले जाना है। वहाँ झड़वा देंगे ठीक हो जाएगी । बस 10 दिन की छुट्टी दे दीजिए ।
लगभग एक महीने बाद मुनियाँ की माँ अकेली लौटी थी अपने गाँव से । बोली मुनिया नहीं रही।
आज भी विश्वास नही होता कि मुनियाँ रही नहीं। लगता है मुनियाँ के गांव जाकर उसे ले आऊं । जब कभी उस से कहती थी मुनियाँ तेरा गाँव देखना है। वो हंस कर कहती , ” बिहार में है मेरा गाँव ,आप नहीं चल पाओगे आँटी गाड़ी से उतरने के बाद बहुत दूर तक पैदल चलना पड़ता है तब जो आता है मेरा गांव ।”
आज न जाने क्यों सड़कों में चलते मजदूरों के बीच मुनिया भी कहती सी दिखती है, देख लो आंटी इनके पैर कितने दुखते होंगे । गाँव शहर से कितना दूर होता है ना? मुनिया का अनकहा ,अनसुना ,आंतरिक दर्द इन मजदूरों को अपने गावों की ओर जाते देख, महसूस करती हूँ। लगता है मैं भी इनके साथ-साथ एक दूरी तय कर रही हूँ ।✍️
दुख भरी दास्ताँ रही muniya की।क्यायही इसके भाग्य में था ।भावुक वर्णन किया है ।nice रेखाचित्र ।
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कुछ वैसे ही अनकहे दर्द सड़कों में महसूस करती हूँ।समर्थन को लेखनी का आभार ।🙏
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heart touching….. plight of migrant workers… happening everyday in some form of other…
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भाव समर्थन के लिए आभार।🙏
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Life of a poor has no value in India.
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नीचे स्तर में गरीबी के साथ नशा और सियासी स्तर में अमीरी की लालसा ने दुख बड़ा दिए।
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Sad life story
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फूल ऐसे भी हैं जो खिले ही नहीं…
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बहुत ही दुखद कहानी।न जाने कितनी मुनिया कही शराबी पति कही बिना पिता के कहीं और कहीं समाज से प्रताड़ित बस सफर में ही जीवन व्यतीत करती यूँ ही जान गवां देती है। निश्चित आज कई मुनिया सड़कों पर दम तोड़ रही होगी जिसकी गिनती शायद भगवान के पंजी में भी नही फिर सरकार क्या करेगी।
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सम्वेदना साझा करने के लिए आभार।
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कुछ दिन पहले एक कविता पढ़ी थी कही 😃 आपका कमेंट याद दिला रहा
बीस की नहीं होती वे लड़कियां
जिनके पिता नहीं होते
वे एक शाम सोलह की होती है
बारहवीं का रिज़ल्ट उन्हें तीस का बना देता है
बेतरतीब सी ज़िंदगी उन्हें दोहरा चरित्र देती है
दिन भर खड़ूस मर्द बन
शाम को माँ की गोद में सर रख
पाँच साल की बच्ची सी दुलराती हैं
पर वो कभी बीस की नहीं होती
—गरिमा जी
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😢😪
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ओफ़😪
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So true…well expressed
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heart touching….
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The plight of Muniya resonates with every poor,helpless women in India who die a tragic death facing the atrocities of the society and constantly struggling to make ends meet….a very touching anecdote.
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Dear Dipti I felt that the child girl couldn’t fight with that sudden situation.she was very much satisfied before marriage playing with her friends.Destiny played a big role.
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Nostalgia …I know one such incident …☺ Nicely done friend 🌸
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जी एक अधूरी सी कहानी थी वो।
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मन विचलित हो जाता हैं
राहो मे राही देखकर
मजबूर बेबस राहो
मे
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Heart touching !!!
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🙏💕
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