
ये दर्द दूसरे का कहीं
खो सा गया है ।
कोई भी उसे ढूंढता नहीं,
वो गुम सा गया है।
शहरों को तराशते हुए,
धोखा मिला जिसे,
वो राह में थका हुआ सा,
कहीं सो सा गया है।
‘मजदूर’ नाम दिया जिसे,
मजबूर था बहुत,
राहें वो अपने गाँव की,
फिर ढूंढता सा है।
राक्षसों की दुनियां में
जो देवता फंसा ,
वो शिव की तरह बचता
भस्मासुर से कहीं ।
ये अश्रु पुष्प मेरे
उन चरणों में देव के
जो सुदामा सा थका
कलियुग में कराहता हुआ कहीं ।
ये दर्द दूसरे का कहीं
खो सा गया है।
कोई भी उसे ढूंढता नही
वो गुम सा गया है ।✍️
बहुत ही सुंदर रचना
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Majdoor majboor ho gaya hay
Logo ke nigaho may
Vho to bhir niklega ghar say
Desh ko bananay kay liyay
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मौन साये दर्द है।🙏
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बहुत ही भावुक अभिव्यक्ति की है आपने ।
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भावना की सहमति के लिए आभारी हूँ ।
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रचना खूबसूरत दिल बहुत रोता है,
वाह कहूँ या आह,
कैसा निष्ठुर
संसार,
कितना किस्मत उसका छोटा है।
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सहृदय धन्यवाद।
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Bahut बढ़िया
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Thanks dear.
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