संग मेरे आकर के बैठा ,
सहमा सहमा “आज”।
कभी सिसकता कभी सुबकता मुझसे बोला, “आज”
मंदिर मस्जिद होटल ढाबे
में, रुदन रोज करता हूँ ,
पर बहरों के कानों में चिल्लाकर रोया
आज” ।
इधर उधर स्वर गूंज रहा है ,
“ईद मुबारक” आज ।
“दर्द भी उसका खुल के रोया कहता मुझसे “आज।”✍️
Wow!! I loved it.
Just a try 😉
👇
कल जो अनदेखा और अप्रत्याशित है,
उसके लिए घोट घोट कर पिस रहा है हमारा आज|
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🎉💕
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Thank you.
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गहरी अभिव्यक्ति 👌
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🙏
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Beautiful ❤
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🎉💕
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बहुत सुंदर👌
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Thanks.💝
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Thought provoking lines!!
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💕
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अति सुंदर।
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💕
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आज क्यो रोया । आश्चर्य है ।आज तो पश्चाताप के लिये होता है ।कल रोने के लिए ।खैर कवि की कल्पना महान है ।सुन्दर प्रस्तुति ।
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क्योंकि जो गुज़र जाते हैं वो लौट के नहीं आते रोने या ख़ुद पे शोक मनाने के लिए ।। पश्चाताप की अंतिम सीमा भी रोने तक ही है ।। जो वर्तमान में है वही शोक मनाता और रोता है ना की आने वाला (कल) ||
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बहुत सुंदर, दीदू👌👌
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💕
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सत्य 👍
उत्तम 👌👌
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Nicee 🌼
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well written
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मेरी शुभकामनायें ।💐💐
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🌹🙏
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