
मन बहुत दुखी है । आज सुना राहत इंदौरी साहब नहीं रहे ।मेरे जन्माष्ठमी के त्योहार का उत्साह गमगीन सा हुआ ।राहत जी के दिल और मन की बात सुनना बहुत अच्छा लगता है।
….फूलों की दुकान खोलो, खुशबू का व्यापार करो,इश्क़ खता है तो ये खता सौ बार करो।
….लगेगी आग तो आएंगे कई मकान सद में , यहां कोई अपना ही घर थोड़े है।
…..अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है,बस्तियां छोड़ के जाने को कहा जाता है।
न जाने क्यों भाव, भाषा, शैली में बहुत अंतर था लेकिन कवि नीरजजी के बाद राहत इंदौरी जी बहुत अपने से लगे थे। दुख है अब कोई दूसरे राहत इंदौरी न आ पाएंगे।कितनी अधूरी सी लगती है कभी ये जिंदगी।अभी तो और भी बहुत सुनने का मन था राहत जी से।
उन्हें मेरी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि।
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राहत को अब चैन मिले यही कामना, उनके शब्दों की ख़ुराक सब अपने तरीके से लेते थे, उनके दकियानूसी विचार भी यदा कदा मंचो पे दिलह जाती है, पर जो चला गया उससे खेद कैसा, मिट्टी में सुकून मिले इन्हें ईश्वर से यही प्रार्थना।
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एक कवि और एक शायर रहे न रहे उनकी कृतियां हमेशा जीवित रहतीं हैं। आज भी राहत जी अपनी कृतियों में जीवंत हैं।
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https://rockshayar.com/2020/08/20/ideal-inspirational-blogger-award/
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हक़ीक़त है यही सच है, नहीं मरते कभी शायर
जहाँ पे अश्क गिरते हैं, वहीं उगते सभी शायर
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