
कभी स्वयं की बात करो तुम।
कभी तो अपना मुँह खोलो।
कब तक बातें गैरों की होंगी ?
कभी स्वयं की भी बोलो।
बहुत सुना है मन की तुमसे
बहुत कह दिया मन की हमसे।
अब तो दिल से बात करो तुम।
अब थोड़ा दिल को खोलो ।
मन्दिर मस्ज़िद बहुत हो गया
अब विद्यालय भी खोलो ।
जो भूखे सोते हैं घर में
उनके संग भी तुम होलो।
एक ओर हैं मित्र तुम्हारे
सारे भारत में छाए ।
दूजी ओर भरे नयन में
कितने आंसू भी आए ।
उनको पास बिठा कर अपने
प्रेम की भाषा में बोलो।
बहुत सुनी है मन की तुम से
अब थोड़ा दिल से बोलो।✍️
अति सुंदर कटाक्ष।
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🌷
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😂😂😂🙏
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🌷
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विशुद्ध राजनीतिक कविता 🙏
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💖
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मन और दिल एक ही है ।समझने का फेर है।बात समझ में आनी चाहिए ।अति सुन्दर कविता ।
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यहां मन और आत्मा
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Feelings are there in ur lines
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💕
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दिल का हाल सुने दिलवाला
Beautifully penned 😊👌
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Thank you Dilip.💖
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👍🙏
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Aap ne is poem me Bhut kuch bol deya he bhut he khub
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🤗💕
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अप्रतिम कविता मेम! दिल तक बात पहुची…👌👌😊🤗🌻⚘🎆
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💖
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