
आज फिर उसकी याद आ गई।वैसे तो सड़क के सफर में अक्सर सड़क -किनारे वाली चाय पीना पसन्द करती हूँ। अधिकतर एक बड़े से हरे भरे पेड़ के नीचे उनका चार पहिये पर ठेला आकर्षित करता है और यहां पेड़ की हवा एक रेस्तरां के एसी से कहीं अधिक लुभावनी होती है और बहुत प्यार से बनाते हैं ये लोग चाय। उनका चीनी कम या ज्यादा पूछना बहुत आत्मीय और सम्मान सा देता है ।
आज स्कूल के बाहर चाय वाले की भी यादआई तो मिसेज.वाजपेयी को ग्वालियर फ़ोन लगा कर नाम पूछा । नाम भूल गई थी चाय वाले का । हाँ उन्होंने याद दिलाया ‘लाले’ था वो । एक मुस्कुराता सौम्य सा चाय वाला ।मुश्किल से उम्र 20-22 वर्ष रही होगी उसकी । ठेला नहीं था उसके पास। एक मेज पर अपना स्टोव रखता था। विद्यालय के ठीक सामने हाई कोर्ट के कई वकील उसकी चाय पीने आते । उस दिन 15 अगस्त था। एक बच्चा चाय की केतली और कप लेकर कार्यालय के बाहर खड़ा था ।उसकी नजर दौड़ते हुए उन सैकड़ों बच्चों पर थी जो हाथों में छोटे तिरंगे और बैलून लिए थे। सरस्वती बाई एक कप चाय उस से ले आई थी । वो अभी भी बच्चों को देख रहा था । मैंने कार्यालय में कार्य रत कमलेशजी से उसे बुलाने को कहा ।वो शर्माता हुआ अंदर आया। उसके हाथ में जब मैंने झंडा और बैलून दिए, वो खुशी में इतनी तेजी से दौड़ा कि उसकी उस खुशी को देखने के आनंद का एहसास आज भी है।
वो दो तीन दिन बाद फिर मेरे कक्ष के बाहर खड़ा था।मैंने उसे अपने पास बुलाया पूछा ‘लाले’ कौन है तुम्हारा ? वो बोला मेरे मामा हैं। मैंने पूछा स्कूल क्यों नहीं जाते हो ? बोला छोड़ दिया । पहले गाँव में पढ़ता था।पूछने पर, पढ़ोगे तो बोला हाँ पढूंगा। उसे इलमारी से एक नोट बुक में अक्षर लिख कर पूछे तो उसने एक ही बार में पढ़ लिए थे। अंग्रेजी के कैपिटल लेटर्स भी उसने पढ़े लेकिन स्माल लेटर्स वो नही पढ़ पाया था। उसे एक नोट बुक में प्रति दिन कुछ लिखने को देती वो उत्साह से लिख कर लाता। उस दिन दोनों हाथ जोड़ते हुए बोला मैडम मेरा दाखिला भी कर दो ।
न जाने क्यों उस बच्चे में क्या था कि रात भर सोचती रही उसका विद्यालय में कैसे प्रवेश कराऊँ । मेरे विद्यालय के 2nd क्लास के बच्चों का अध्धयन स्तर उस से कहीं अधिक था और उम्र भी उसकी लगभग 10 वर्ष रही होगी।
दूसरे दिन मराठा बोर्डिंग के निकट स्थित सरकारी प्राथमिक विद्यालय का विचार आया । वहाँ के प्रधानाध्यपक श्री नागेंद्र जी से चर्चा करने पर मैंने उनसे मिलने की अनुमति ली ।
फिर लाले की चाय की दुकान आते ही मैंने जैसे ही कार रोकी बच्चा मुस्कुराया । मैं बोली थी आ जाओ तुम्हें घुमा कर लाऊं। वह अपने मामा (लाले) का मुँह देखने लगा।
फिर दौड़ कर आ गया। मैंनें कहा आओ बैठो तुम्हें एक स्कूल दिखाऊँ वो बहुत खुश था।उसे रास्ते में सब समझा दिया था कि वो बहुत अच्छा बच्चा है ,स्कूल में जाकर नमस्ते कहना है और जो पूछा जाए उसका उत्तर देना।
प्रधानाध्यापक नागेंद्र सर की कृपा से बच्चे को 5वीं में प्रवेश मिल गया था इस विश्वास पर कि बच्चा मेहनत कर लेगा ।
वो अक्सर अपने विद्यालय में किया गया कक्षा-कार्य दिखाने आता।एक अजीब सी लगन थी उस बच्चे में। मैं भी अपने को न रोक पाती उसकी नोट बुक में एक पेपर में very good लिख कर रख दिया करती।
मई जून का महीना रहा होगा। वो कक्ष के बाहर खड़ा था आज उसके हाथ में चाय की केतली नही थी वह अपना परीक्षा परिणाम लेकर मुस्कुरा रहा था। अपने को रोक नही पाई थी। उसके हाथ से रिजल्ट ले लिया था । वो बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो गया था । मैंने खुशी से उसे अपने विद्यालय के झूले में बिठा कर जोर से झुलाना शुरू कर दिया था।
आज बहुत दूर हूँ ग्वालियर से वो भी इन वर्षों में बड़ा हो गया होगा। 19-20 वर्ष की आयु का होगा । मैं भी नौकरी छोड़ कर आ गई थी ।✍️
Writing artistry
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Dear Reeta my sincere thanks for appreciating my emotions.
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Beautifully drafted -I could see the movie
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Thanks a lot dear A .Your appreciation inspiring my pen .
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बेहद भावपूर्ण और कहीं न कहीं शिक्षा कितनी ज़रूरी है और कितने ही बच्चों को आपकी तरह मार्गदर्शक की जरूरत को दर्शाती रचना.👏👏
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प्रिय A.S.मैंने वो istitution join किया जिसका foundation 101 वर्ष पहले एक dedicated christian lady ने किया था। मेरे supreme boss मध्य प्रदेश के जाने माने educationist थे जो कश्मीर को belong करते थे और सभी यूनिट्स के boss Mr.M.K..Adil थे और Mr. Manke रहे। मेरा वो संस्थान स्वयं में एक प्रेरणा थी।🙏
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बहुत ही अच्छा लगा जानकर,आपके लिए जैसे वो प्रेरणा थे ,वैसे ही आप प्रेरणादायक हो,एक बच्चे के लि ये स्कूल का दरवाज़ा सामने होते हुए भी उस तक पहुंचने की डगर में सहायक बनना 👏👏🙏
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ऐसे बच्चे ही मोदी बन जाते हैं ।उसको मोदी के पास भेज दिया जाय एक छोटा मोदी तैयार हो जायेगा ।लेख भाव भरी रचना है ।
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नहीं यथार्थता में बहुत अंतर है । किताबों की दुनियाँ whatsapp विद्यालय से बहुत अलग है।🌷
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Kya kabhi usse baat nahi hui?
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No Sonia due to some domestic reason I resigned from the service and left Gwalior. That unit of my institution also shifted away from that place.
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सराहनीय, दीदू | और नौकरी छोड़ने की वजह ?
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समय का आदेश।☺️
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वास्तव में ?
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सुंदर अभिव्यक्ति
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Wow… Motivating 🙏🙏
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Thank you rachna for appreciation .
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