ना जाने कुछ,
“शब्द बंधे से” ।
माँ की याद
दिलाते हैं ।
“हरि ओम तत्सत”
“हरि ओम तत्सत”,
भजन जब भी हम,
दोहराते हैं।
कथा सत्यनारायण की
जब भी पढ़ी है।
लगा संग हमारे माँ ,
आ के खड़ी है।
सिर में रखे वो पल्लू ,
प्रश्न पूछती माँ ,
बता तू कलावती
रात भर रही कहां ?
माँ आंखों से खींचे थी,
लक्ष्मण सी रेखा ।
जिसे हमने डर से
हमेशा था देखा ।
वो कम बोलती थी,
वो हंसती भी कम थी ।
मगर सारी दौलत
माँ की हस्ती से
कम थी। 🎉🎉🙏 ✍️
Speechless ……💝
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🙏💕
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💖🌷🙏
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अति सुन्दर वर्णन किया है । माँ सामने खड़ी है दिन प्रतिदिन के क्रिया कलाप याद आने लगे । खिडक़ी पर बैठ कर इन्तजार करना कभी भूला नही जा सकता है ।उनके त्याग को याद करना ही एक श्रधान्जली है ।🤗
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,🎉💕🙏
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अति सुन्दर वर्णन किया है । माँ सामने खड़ी है दिन प्रतिदिन के क्रिया कलाप याद आने लगे । खिडक़ी पर बैठ कर इन्तजार करना कभी भूला नही जा सकता है ।उनके त्याग को याद करना ही एक श्रधान्जली है ।🤗
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💕💖🎉
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😔🤔☺️🙏🎉
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मां बस मां होती है,भावपूर्ण रचना 🙏
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🙏💕Dear A. S. With respect you are nominated for Ideal inspiration Award.🎉
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Thankyou so much it’s an honour n I really appreciate that you thought of me,it’s really motivating .But I am not in to writing award posts ,as somehow not able to connect to it.but nomination from you is what I really appreciate…thankyou so much.💕🙂
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Right tribute to her .
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💕💖🎉
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उत्तम और सराहनीय लेखन हुआ🌿🌿🌿
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🌷🙏
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शुक्रिया साधक 💖🎉🌷🙏
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सराहनीय👌 नमन🙏
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🎉🌷
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Thank you Joya.🙏
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🙏💐
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Thanks Kamala Bekaar🌷
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शुक्रिया साधक 💖🎉🌷🙏
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Nostalgia हो गया
हृदय स्पर्शी रचना 😊
प्रणाम
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शुक्रिया । याद आती है जब भी तो प्रत्यक्ष सी।🙏
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वाह्ह्हह्ह्ह्ह शानदार 👌👌ह्रदयस्पर्शी कृति 👌👌
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