रिश्ता धीरे धीरे
रिसता ही गया।
कमजोर यहाँ
कोई था अगर,
पिसता ही गया।
बहुत मिठास थी
चालों में ,
अमृत समझा
था प्यालों में।
विष से थे भरे,
विश्वास गया।
पीड़ा थी बहुत
रिश्तों में जहाँ ।
दर्द मिला,
किश्तों में वहाँ।
सहने जो चला,
सहता ही गया।
रिश्ता धीरे -धीरे
रिसता ही गया।✍️
रिश्ता रिसता ही गया। बहुत खूब।👍🙏🙏🤗
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शुक्रिया ।
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बहुत खूबसूरत
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शुक्रिया नवनीत।
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बहुत अच्छी रचना 👌
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शुक्रिया।
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बढ़िया लेखनी🌿🌿
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आभार।
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🙏
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बहुत सुन्दर
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धन्यवाद प्रिय शबनम।
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बहुत सुंदर👌
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Thank you zoya.
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बेहतरीन
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Thank you Chitra.
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👌🏼👌🏼😊
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Thanks Anita.🌷
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आभार।
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आज के रिश्तों की विडम्बना। 👌👌
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बदलती समाज की मान्यताएं।
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😊
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रिश्ते और रिसने का बहुत सुंदर प्रयोग किया है
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Subjectivity hay
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Badhiya लेखन 🌼
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वाह्ह्हह्ह्ह्ह बहुत खूब 👌👌
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बहुत सुंदर रचना
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