
जो बेटी घर की चहल-पहल ।
थी कोमल जैसे एक कमल।
निर्मल मन घर से जो निकल,
थी रही टहल ।
छलके वो नयन, पल पल छल छल ।
गरल भरा वह कोलाहल ।
किसने जीवन में दिया दखल ?
वह दुर्बल मन हो गई विह्वल ।
जैसे ‘बूंद गिरे धरती के पटल’ ।
मरने के बाद वो क्यों मारी ?
बिन कारण ही वह क्यों हारी ?
ध्वनि विपक्ष की हुई प्रबल।
नेता बलशाली था घर से निकल ,
चिल्लाया फिर से उछल उछल,
आओ संग में मेरे गाओ-
“बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ।”✍️
हर समय राजनीति को दोष देकर ये कायर समाज अपना मुंह छुपा लेता है 😂😂😂😂👌
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यथार्थ को दर्शाती हुई रचना 👌🏼😊
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शुक्रिया बेटा।🌹
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A satire on present situations
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Thanks dear sis.
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Current situation depicted beautifully.
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ये दर्द बड़ा बेदर्द । thanks dear dipti.🌹
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जिसके साथ बीती होगी वही जान सकता है ।अति भावुक चित्रण किया है ।
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दिल से शुक्रिया Dr Deepapant.🌹
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शर्म की बात हैं कि माँ बाप को कहना पड़ रहा हैं कि अपने बेटी बचाओं, बेटी बढ़ाओ..
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बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
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आभार।
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बेहतरीन
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शुक्रिया।🌹
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वर्तमान परिस्थितियों को दर्शाती एक मार्मिक प्रस्तुति ! धन्यवाद तारा जी 🙏
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हृदय से आभार। आपके शब्द मेरी प्रेरणा।🙏🏻
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Pleasure is all mine 🙏
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लवली
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,thank you ji .
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