आज रजाईं है मुस्काई।
बहुत दिनो से बंद बॉक्स में,
मैं थी और मेरी तन्हाई ।
रेशमी कम्बल सबको भाए,
वो ही पहले बाहर आए ।
एक अकेली सिमटी सी मैं,
बॉक्स में ले मन को मुरझाए ।
चर्चा हुई थी कल इस घर में,
कैसे ठंड में भीगा वो भाई।
झुग्गी में रहता जो बोला,
सुन सभी का मन था डोला।
मुझे बॉक्स से बाहर निकाला
और जाकर उसको दे डाला।
लगा आज अपने घर आई।
संग मेरा पाकर वो है खुश,
उसके संग मैं भी मुस्काई।✍️
रजाई की आत्मकथा ।कुछ दिन आराम फिर जश्न ।सब के साथ मिलजुल कर रहना ।कितना व्यवस्थित जीवन है इसका । बहुत सुन्दर वर्णन किया है ।
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बहुत सुंदर
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तुम्हें प्रस्तुति अच्छी लगी शुक्रिया। Sharmaji’ solutions का चिंतन अति उच्चस्तरीय होता है । पढ़ कर कुछ सिखा जाता है।
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बहुत बहुत आभार 🙏🙏❤️
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गरमाहट भरी मुस्कान 😊
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सच में । शुक्रिया ।
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My pleasure 🙏
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बहुत सुंदर अभिव्यक्त किया है 👌🏼👏😊
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आभार अनिता।🌹
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बहुत प्यारी 🙂👌
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शुक्रिया AS
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So sweet 🥰
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वाह क्या बात है 👌👌👌
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Thank you Mahavish.☺️
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