मन हुआ नमन
उस राह में जाकर,
जहां बैठा था किसान,
जमीं लुटने से घबराकर।
अपने भारत के दर्शन,
हो जाते यहां पर आकर।
जैसे ईश्वर के दर्शन,
हो जाते मन्दिर जाकर ।
खुदा स्वयं मस्ज़िद से आए।
हर वाणी में गुरुद्वारा।
कितनी ताकत से बैठा है,
मेरा देश ये प्यारा।
कुछ उद्घघोष यहां से आते,
थे नारा एक लगाते।
जय जवान और
जय किसान सुन,
नेता थे डर जाते।
हर नेता व्यापारी था अब,
इनके गुरु गुजराती।
नंबर वन के व्यपारी सब,
नाचें ज्यूँ बाराती।
झूम रहे जो कुर्सी पाकर,
उनसे देखा ना जाता,
जब अन्न उपजाने वाला
खुलकर पीज़ा खाता।
नेता के कल्चर का पीज़ा
भी है ,खेत की माया ।
इनकी ही तो मेहनत से
खेत हरा लहराया।
सब धर्मों के बीच में
देखो कैसे खोदे खाई।
ये ना जाने संविधान का
नाता पक्का भाई।
आशीर्वाद सभी का
है किसान के मत्थे।
वाह गुरु दा खालसा
वाह गुरु दी फतेह। ✍️
In
वाह, बहुत ख़ूब व्यंग्य कसा है आपने👏👏
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आपका प्रोतसाहन मेरी कलम में श्याही भरता है। 💕🙏
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बहुत अच्छा लिख रही हो आप👌 लिखते रहिए💕
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Very beautifully depicted plight of the farmers.
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Thank you Dipti for sharing and feeling.
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😂😂😂😂😂😂😂😂😂कहने में क्या है। कुछ भी कहा जा सकता है। किन्तु जो कहा गया वो सत्य हो ये नहीं कहा जा सकता।
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आज breakfast में क्या लिया ? क्या उसका दूर का रिश्ता किसानों से था ? पता नहीं किस रिश्ते से पूछ रही हूँ
तुमसे । 🙏
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Very well penned down👏
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Good expression
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Thank you dear sis for sharing.🌹💕
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दिल को छू लिया आपकी लेखनी ने 🙏🙏🙏🙏
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शुक्रिया दिल से।
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