
वे तीन घण्टे पल की तरह छोटे थे। कितने बंधे बंधे से थे । हाथ की नोट books बाहर रख examination room में enter करना लगता सब कुछ भूल चले थे।
Answer sheet मिलते ही Roll numberआदि लिखना। Question paper देखने से पहले मन ही मन ईश्वर का स्मरण करना।
पेपर मिलते ही पूरे प्रश्न-पत्र को देखना कि कितने प्रश्नों के उत्तर आते हैं। 10 मिनिट तो इन्ही कामो में लग जाते।
प्रश्नों का उत्तर लिखते हुए बीच में ही invigilator का first page check करना बुरा लगता ।
दूसरे प्रश्न का उत्तर पूरा भी न हो पाता कि घण्टे की टन्न की ध्वनि सतर्क करती कि एक घण्टा हो चुका।
दूसरा घण्टे में दूसरा तीसरा पूरा होते होते चौथे प्रश्न को पढ़ रहे होते थे और
चौथा प्रश्न शुरू ही किया होता कि घण्टे की टन्न आवाज फिर सतर्क करती कि बस अब एक बचा है ।
पांचवां प्रश्न का उत्तर शुरू ही किया होता तो अचानक वो घण्टा बचता जिसमें invigilator कहती केवल 15 मिनिट बचे हैं इसके साथ ही एक सफेद सुतली(thread) सबके table में रख कर कहतीं कॉपी बांध लो, bind your answer sheets.
उनके आगे ही बढ़ते हम फिर लिखना शुरू कर देते थे।
कुछ तो तब तक खड़ी रहतीं जब तक कॉपी बांध न लें।
कैसा भयानक होता था वो पल जब अगले अंतिम घण्टे की आवाज बजते ही invigilator कॉपी छीन कर ले जातीं।
बाहर आते ही हम question paper में solved questions पर टिक करते । कई पेपर तो बहुत अच्छे जाते पर कुछ में प्रश्न छूट भी जाते थे।
अब लगता है वे तीन घण्टे जीवन का सार थे । ✍️
आपके लेख ने परीक्षा का समय याद दिला दिया👌🏼😊
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अनिता जी शुक्रिया।☺️🌹
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गुजर गई वह हालाते मंजर साहिल क्यो आवाज लगाए,हर घटी,पल परिक्षा के हाल सभी। हम आज भी अपनी जीन्दगी रुपी परिक्षा हाल मे बैठ अनुभव के उतर ही देते रहते है। हालात तभी वही थे आज भी वही मगर तरीका बदल गया। बेहतरीन लेखनी
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आप सराहना मेरी कलम की श्याही है।
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राम राम जी
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जय सिया रामजी।🙏😀
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So relatable. Thank you for sharing ❤
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🌹☺️
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बहुत सुंदर लिखा है
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☺️🌹
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परीक्षा के दिन याद आ गए।खूबसूरत।👌👌
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😊🌹
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वाह, कमाल👌 परीक्षा के दिन याद दिला गई आपकी रचना😊
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मुझे भी बहुत मुश्किल लगता था एग्जाम देना। लेकिन एक दिन कुछ अलग बात हुई। मैं एग्जाम के दिन कक्षा में बेंच पर बैठा था और सोच रहा था की तयारी ठीक ठीक सी है पता नहीं पेपर कैसा होगा। फिर मन में आया की कितने लोग हैं जिन्हे इस बेंच पर बैठ कर पेपर लिखने का सौभाग्य मिलता है। बहुत बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो सारा जीवन गरीबी और मजदूरी में निकल देते हैं। कभी स्कूल भी नहीं जा पाते और यूनिवर्सिटी तो बहुत दूर की बात है। मैंने उस पल का धन्यवाद् किया की मैं इस बेंच पर बैठा हूँ और मुझे सौभाग्य मिला है यह पेपर देने का जो लाखों लोगों के लिए सपना मात्र है। मैं कितना खुशकिस्मत हूँ। जब यह विचार आया तो मेरा संशय और डर दूर हो गया। अब ऐसा है की कुछ न कुछ पढता ही रहता हु की परीक्षा देने का मौका मिलेगा और बार बार उस एहसास को जीने का मौका मिलेगा।
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👍👌 बहुफ खूब।
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अरे! दी आपके वक़्त में भी ऐसा ही होता था?😜
आप भी सामने ही खड़ी रहती थीं क्या, बांधने तक😂…
मतलब हम बच्चों पे थोड़ा सा भी रहम मत करिएगा ।
💕💕
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😀 👍
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