
बिटिया मेरा दर्द मूक मैं किस से बोलूं रे।
सुनने वाले भी गए ऊब ,मैं किस से बोलूं रे।
बीते जाते हैं दिन जितने मैं उतना मरती हूँ।
जिसदिन हँसी मैं जितना बेटी, रात को रोती हूँ।
अपने रोने की बात ओ बिटिया, किस से बोलूं रे।
सुन ने वाले भी गए ऊब मैं किस से बोलूं रे ।
बेटी थी या तू देवी थी, था घर में माँ का वास मेरे।
देवी ने सहा क्यों इतना दुख, मेरे घर से जाने में।
मैं मन में रोलूँ रे …बिटिया मेरा दर्द मूक ……
दुनियां ये आना जाना है पर माँ का मन कब माना है।
जन्मदिवस में तेरे अब भी, राह निहारूं रे…..✍️
बहुत दर्द है इन पंक्तियों में।
खूबसूरत लयबद्ध रचना।👌👌
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🙏🏼
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🙏
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दर्द भरी कविता |
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🙏🏼🌹
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