जबसे है मेरा , चश्मा टूटा ,
हर शब्द ये मुझसे, है रूठा ।
कहता है ले अब तू ढूंढ मुझे,
आंखों पर जो इतना गर्व तुझे।
तूने शब्दों को कई बार ,
आंखों से ही बस जोड़ा है ।
आंखों का करके है बखान ,
चश्मे को क्यूँ कर छोड़ा है।
दो दिन वो जो तुझसे दूर हुआ ,
ओह तू कितना मजबूर हुआ ।
हम शब्दों को उसने ही तो ,
तेरी आँखों से जोड़ा है।
चश्मे की कमी न सह पाऊँ।
विरहा की पीड़ा बतलाऊं…
वह जबसे मुझसे जुदा हुआ ,
हर अक्षर काला भैंस हुआ ।
वो घर वापस जब आएगा,
मल- मल से उसे सहलाऊंगी ।
फिर प्यार से पहनूँगी उसको,
आभार मैं उसका जतला कर ,
शब्दों की जलधि में नहाऊंगी। ✍️
बहुत अच्छा
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Thanks chhaya.,🌷
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💖💖
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👏👏👏👏👏👏👏👍
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Thanks a lot.
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Thanks for following
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🙏💖
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Very good!😊🌹
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Thank you ji.
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🤗❣️💐💓🌹🍫My pleasure. Stay happy
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Beautiful lines
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Thanks.🙏
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अति सुंदर रचना 👌😊
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आपने पढ़ी शुक्रिया।
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बहुत बढ़िया
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शुक्रिया जी।
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