जीवन इक उम्र में गंगा के बहाव सा …..उसमें लगी एक डुबकी सा…..
जिस में नाक बंद कर
डुबकी लगाते ही पल भर में बाहर निकल आते हैं हम ….
पानी बह जाता है आगे…..
माँ पिता के छूट जाने जैसा ….
बस भीग जाते हैं हम….
साथ आया वो गीलापन…
वे पानी की बूंदें…..
भाई – बहन के साथ जैसा…..
इस उम्र में ये निस्वार्थ रिश्ते बहुत याद जाते हैं। …✍️
✍️
सही है
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Thanks.
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ThankYou.
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How true…excellent work, Tara!
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बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति 🌼🌼
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आपको रचना पसन्द आई ।धन्यवाद।
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